
परिचय: आधुनिक तकनीक की छिपी हुई नींव
चमचमाते शो-रूम में, जहाँ इलेक्ट्रिक गड़िया एक स्वच्छ भविष्य का वादा करती हैं, हमारी सीमाओं की रक्षा करने वाली प्रिसीजन-गाइडेड मिसाइलों में, और अरबों लोगों को जोड़ने वाले स्मार्टफोन में, एक छिपी हुई निर्भरता है जो राष्ट्रों के तकनीकी भविष्य को तय कर सकती है। ये हैं रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REEs), 17 मेटैलिक तत्वों का एक समूह, जो नाम के बावजूद पृथ्वी की परत में भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, लेकिन कुछ देशों में ही केंद्रित हैं। आज, एक देश इस बोहोत ही जरूरी सप्लाई चेन पर लोहे की पकड़ रखता है: चाइना।
भारत के लिए, जो $5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था और ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की आकांक्षा रखता है, यह डिपेंडेंसी एक रणनीतिक कमजोरी और एक अभूतपूर्व अवसर, दोनों है। 2025 में चाइना द्वारा क्रिटिकल रेयर अर्थ एलिमेंट्स के एक्सपोर्ट को सीमित करने से, भारत की इलेक्ट्रिक गड़िया प्रोडक्शन से लेकर डिफेंस कैपेबिलिटीज़ तक सब कुछ प्रभावित हो रहा है, अब समय आ गया है कि भारत रेयर अर्थ इंडिपेंडेंस की दिशा में अपना रास्ता बनाए।
रेयर अर्थ चैलेंज को समझना
रेयर अर्थ एलिमेंट्स इतने जरूरी क्यों हैं?
रेयर अर्थ एलिमेंट्स 17 मेटल्स का एक समूह हैं (lanthanide series + yttrium और scandium) जिनमें विशेष मैग्नेटिक और ऑप्टिकल प्रॉपर्टीज़ होती हैं। ये मटेरियल्स, स्मार्टफोन, विंड-टर्बाइन मैग्नेट्स, इलेक्ट्रिक गाड़ियों के मोटर्स, सोलर पैनल्स और एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम को बनाने में अत्या आवश्यक होती है। हालाँकि REEs पृथ्वी की परत में सचमुच "दुर्लभ" नहीं हैं, बल्कि केवल कुछ देशों में ही केंद्रित हैं।
ग्लोबल रेयर अर्थ मार्केट, जिसकी 2025 में कीमत लगभग $9.6 बिलियन डॉलर है, 2030 तक $18.5 बिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, मुख्य रूप से क्लीन एनर्जी ट्रांज़िशन और डिफेंस मॉडर्नाइजेशन से प्रेरित है। हर इलेक्ट्रिक गाड़ी को 1–3 किलो रेयर अर्थ मैग्नेट्स की जरूरत होती है, जबकि एक विंड टरबाइन में इन क्रिटिकल मटेरियल्स की मात्रा 600 किलो तक हो सकते हैं।

चाइना की रणनीतिक पकड़
चाइना के पास दुनिया का सबसे बड़ा रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REE) का भंडार (44 मिलियन टन) है और 2023 में ग्लोबल REE प्रोडक्शन का लगभग दो-तिहाई हिस्सा कंट्रोल करता था। और भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह लगभग 90% रेयर-अर्थ मैग्नेट्स प्रोसेस करता है, ये नियर-मोनोपॉली बीजिंग को ग्लोबल सप्लाई चेन पर बोहोत फायदा देती है।
2025 में, चाइना ने क्रिटिकल रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर एक्सपोर्ट रिस्ट्रिक्शंस लगाए, जिसके लिए स्पेशल लाइसेंस और एंड-यूज़ डिक्लेरेशंस आवश्यक थीं। प्रभाव तत्काल था: भारतीय ऑटोमोबाइल कंपनियों ने प्रोक्योरमेंट में गंभीर देरी की सूचना दी, और कई इम्पोर्ट रिक्वेस्ट्स चाइनीज़ अप्रूवल की प्रतीक्षा कर रहे थे।
भारत की रेयर अर्थ क्षमता
प्रचंड भंडार, अप्रयुक्त क्षमता
भारत के पास 6.9 मिलियन टन रेयर अर्थ एलिमेंट्स का भंडार है, जो ग्लोबल स्तर पर पाँचवाँ सबसे बड़ा भंडार है (US Geological Survey के अनुसार)। इस REE रिसोर्स का अधिकांश हिस्सा मोनाज़ाइट-रिच कोस्टल सैंड्स में है; अनुमानित 13.07 मिलियन टन मोनाज़ाइट में 55–60% रेयर अर्थ ऑक्साइड्स हैं। डिपॉज़िट्स केरल, तमिलनाडु, ओडिशा और आंध्र प्रदेश जैसे कोस्टल स्टेट्स में और झारखंड व पश्चिम बंगाल जैसे इनलैंड स्टेट्स में फैले हैं।
इस वेल्थ के बावजूद, भारत वर्तमान में केवल neodymium और praseodymium की बोहोत ही छोटी मात्रा (0.0011–0.012% कॉन्संट्रेशंस) निकालता है, जो एक अनटैप्ड पोटेंशियल दर्शाता है।
इंडियन रेयर अर्थस लिमिटेड (IREL)
इंडियन रेयर अर्थस लिमिटेड (IREL), जो 1950 से Department of Atomic Energy के तहत काम कर रही है, वर्तमान में भारत के रेयर अर्थ माइनिंग और प्रोसेसिंग पर मोनोपॉली रखती है। कंपनी ने FY2024 में 5.31 लाख टन मिनरल प्रोडक्शन का रिकॉर्ड बनाया, और ओडिशा के रेयर अर्थ एक्सट्रैक्शन प्लांट में केमिकल प्रोडक्शन में 9.8% की बढ़ोतरी दर्ज की।
IREL ने आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में एक पायलट रेयर अर्थ पर्मानेंट मैग्नेट (REPM) प्लांट शुरू किया है, जो इंडिजिनस टेक्नोलॉजी का उपयोग करते हुए प्रति वर्ष 3 टन samarium–cobalt magnets बना सकता है। हालाँकि छोटा है, यह संयंत्र लोकल एक्सपर्टीज़ को दर्शाता है और भविष्य में neodymium–iron–boron magnets के बड़े प्लांट्स का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
REE का उपयोग करने में बाधाएँ
प्रोसेसिंग मे आने वाले कठिनाइया
भारत के पास माइन किए गए concentrate को separated oxides में प्रोसेस करने की सीमित सुविधाएँ हैं। सरकारी कंपनी IREL, माइनिंग और एक्सट्रैक्शन में डॉमिनेट करता है, लेकिन इंटरमीडिएट प्रोसेसिंग कैपेबिलिटीज़ की कमी है, सेपरेशन और रिफाइनिंग प्लांट्स बहुत कम हैं, और कोई डोमेस्टिक मैग्नेट मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री नहीं है।
स्टेट मोनोपॉली और इन्वेस्टमेंट गैप्स
IREL का प्रभावी मोनोपॉली प्राइवेट इन्वेस्टमेंट और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को discourage करता है। एडवांस्ड REE एक्सट्रैक्शन और सेपरेशन के लिए भारी खर्च और टेक्निकल एक्सपर्टीज़ की आवश्यकता होती है, हेवी-रेयर-अर्थ सेपरेशन विशेष रूप से बोहोत जटिल है और रेडियोएक्टिव बाय-प्रोडक्ट्स उत्पन्न करता है।
एनवायरनमेंटल और रेगुलेटरी रुकावटे
कोस्टल रेगुलेशन ज़ोन (CRZ) नॉर्म्स REE-रिच बीच सैंड्स तक एक्सेस को सीमित करते हैं, जबकि एटॉमिक एनर्जी एक्ट प्राइवेट सेक्टर पार्टिसिपेशन को मोनाज़ाइट माइनिंग में रिस्ट्रिक्ट करता है। एनवायरनमेंटल क्लीयरेंस और रेडियोएक्टिव एलिमेंट्स की मौजूदगी के कारण स्ट्रिक्ट सेफ्टी मेज़र्स और स्पेशलाइज्ड हैंडलिंग फैसिलिटीज़ की ज़रूरत होती है।
नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (NCMM)
सेल्फ-रिलायंस के लिए व्यापक रणनीति
जनवरी 2025 में, यूनियन कैबिनेट ने नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (NCMM) को सात वर्षों के लिए ₹34,300 करोड़ ($4.1 बिलियन डॉलर) के कुल आउटले के साथ अप्रूव किया। यह मिशन पूरी वैल्यू चेन को कवर करता है — एक्सप्लोरेशन और माइनिंग से लेकर प्रोसेसिंग, रीसाइक्लिंग और एंड-ऑफ-लाइफ प्रोडक्ट्स से रिकवरी तक।
NCMM के तहत, Geological Survey of India 2024-25 से 2030-31 तक 1,200 एक्सप्लोरेशन प्रोजेक्ट्स करेगा, जबकि 100 से अधिक क्रिटिकल मिनरल ब्लॉक्स की ऑक्शनिंग होगी।
मुख्य फंडिंग:
- डोमेस्टिक एक्सप्लोरेशन: ₹7,000 करोड़ GSI एक्टिविटीज़ के लिए
- फॉरेन सोर्सिंग: ₹5,600 करोड़ ओवरसीज़ एक्विज़िशन और रिस्क कवरेज के लिए
- रीसाइक्लिंग इंफ्रास्ट्रक्चर: ₹1,600 करोड़ मिनरल रिकवरी और रीसाइक्लिंग स्कीम्स के लिए
- वैल्यू चेन डेवलपमेंट: ₹1,600 करोड़ आरएंडडी, प्रोसेसिंग पार्क्स और स्टॉकपाइलिंग के लिए
- ह्यूमन रिसोर्सेज़: ₹600 करोड़ स्किल डेवलपमेंट और इंटरनेशनल कोलैबोरेशन के लिए

मिनिस्ट्री ऑफ माइनस एक Production-Linked Incentive स्कीम डिज़ाइन कर रही है क्रिटिकल मिनरल्स की रीसाइक्लिंग के लिए। ई-वेस्ट और ईवी मोटर्स से मैग्नेट्स रीसायकल करना कच्चे माल की मांग को कम कर सकता है, हालांकि यह एनर्जी- और वॉटर-इंटेंसिव है।
चाइना की पकड़ तोड़ना: भारत का मल्टी-लेवल प्लान
इंटरनेशनल पार्टनरशिप्स और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर
IREL सप्लाई चेन और टेक्नोलॉजी को सुरक्षित करने के लिए इंटरनेशनल पार्टनरशिप्स पर काम कर रहा है। कंपनी ओमान, वियतनाम, श्रीलंका और बांग्लादेश के साथ रेयर अर्थ एक्सप्लोरेशन और डेवलपमेंट के लिए कोलैबोरेशन तलाश रही है। इसके अलावा, Khanij Bidesh India Limited (KABIL) के ज़रिए भारत ने अर्जेंटीना के लिथियम-रिच कैटामार्का प्रांत में 15,703 हेक्टेयर में एक्सप्लोरेशन राइट्स हासिल किए हैं।
जापानी और साउथ कोरियन कंपनियों के साथ मैग्नेट प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी के लिए टेक्नोलॉजी पार्टनरशिप्स को क्रिटिकल टेक्नोलॉजी गैप भरने के लिए आगे बढ़ाया जा रहा है।
रीसाइक्लिंग और सर्कुलर इकोनॉमी
भारत वर्तमान में रीसाइक्लिंग के माध्यम से 1% से भी कम रेयर अर्थ रिकवर करता है, जबकि चाइना में यह दर लगभग 100% है। NCMM में रीसाइक्लिंग इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने और tailings, fly ash, और red mud जैसे अल्टरनेटिव सोर्सेज़ से क्रिटिकल मिनरल्स रिकवर करने के प्रावधान शामिल हैं।
ई-वेस्ट से अर्बन माइनिंग भारत के लिए एक बड़ा अवसर है, जहाँ हर साल लाखों स्मार्टफोन और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस end-of-life तक पहुँचते हैं।
प्राइवेट सेक्टर पार्टिसिपेशन
2023 में Mines and Minerals Act को amend करके रेगुलेटरी बॉटलनेक्स को सुलझाना शुरू कर दिया है, जिससे दशकों के पब्लिक सेक्टर मोनोपॉली के बाद सेक्टर को प्राइवेट कंपनियों के लिए खोला जा रहा है।
आर्थिक और रणनीतिक प्रभाव
मार्केट अवसर
भारत की रेयर अर्थ मैग्नेट की मांग का अनुमान 4,000 टन प्रतिवर्ष है, जिसमें 2030 तक दोगुनी होने की क्षमता है। केवल इलेक्ट्रिक गाड़ियों का एक सेक्टर ही बहुत ज्यादा मांग को ड्राइव करने की उम्मीद दे रहा है, जहाँ भारत इलेक्ट्रिक पैसेंजर गड़ियों में उल्लेखनीय ग्रोथ टारगेट कर रहा है।
मांग बढ़ाने वाले प्रमुख सेक्टर:
- इलेक्ट्रिक गड़िया: प्रति गाड़ी 1–3 किलो रेयर अर्थ मैग्नेट की आवश्यकता
- रिन्यूएबल एनर्जी: विंड टरबाइन जिन्हें 600 किलो तक रेयर अर्थ मटेरियल्स की जरूरत
- डिफेंस सिस्टम: प्रिसीजन-गाइडेड मिसाइलें और एडवांस्ड राडार सिस्टम
- इलेक्ट्रॉनिक्स: स्मार्टफोन, कंप्यूटर और कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स
टेक्नोलॉजिकल सॉवरेनिटी
रेयर अर्थ इंडिपेंडेंस भारत की टेक्नोलॉजिकल सॉवरेनिटी आकांक्षाओं के लिए बुनियादी है। इन क्रिटिकल मटेरियल्स पर कंट्रोल भारत को अपनी टेक्नोलॉजिकल एम्बिशन को बिना बाहरी प्रतिबंधों के आगे बढ़ाने में सक्षम बनाएगा, और ₹76,000 करोड़ के आउटले वाले India Semiconductor Mission जैसी पहलों को सपोर्ट करेगा।
जियोपॉलिटिकल पोज़िशनिंग
अल्टरनेटिव सप्लाई चेन विकसित करके, भारत चाइना पर ग्लोबल डिपेंडेंस को कम कर सकता है, साथ ही डेमोक्रेटिक एलायज़ के लिए एक रिलायबल सप्लायर के रूप में अपनी पोज़िशन मजबूत कर सकता है। यह मिनरल सिक्योरिटी पार्टनरशिप (MSP) जैसी पहलों के साथ मेल खाता है, जहाँ भारत समान विचारधारा वाले देशों के साथ क्रिटिकल मिनरल सप्लाई को सुरक्षित करने के लिए सहयोग करता है।
भारत को आगे क्या करना चाहिए: रणनीतिक एक्शन प्लान
शॉर्ट-टर्म प्रायरिटीज़ (2025–2027)
- REPM प्रोडक्शन को तेज करना: पायलट 3-टन सुविधा से कमर्शियल प्रोडक्शन तक स्केल-अप
- टेक्नोलॉजी एक्विज़िशन: जापान और साउथ कोरिया के साथ एडवांस्ड प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी के लिए पार्टनरशिप फाइनलाइज़ करना
- इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट: मॉडर्न इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ डेडिकेटेड मिनरल प्रोसेसिंग पार्क्स स्थापित करना
- रेगुलेटरी स्ट्रीमलाइनिंग: एनवायरनमेंटल क्लीयरेंस और लैंड एक्विज़िशन प्रक्रियाओं को फास्ट-ट्रैक करना
मीडियम-टर्म गोल्स (2027–2030)
- डोमेस्टिक प्रोसेसिंग कैपेबिलिटीज़: पूरी सेपरेशन और रिफाइनिंग इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करना
- मैग्नेट मैन्युफैक्चरिंग: बड़े पैमाने पर नियोडिमियम–आयरन–बोरॉन मैग्नेट प्रोडक्शन फैसिलिटीज़ स्थापित करना
- रीसाइक्लिंग इंफ्रास्ट्रक्चर: व्यापक अर्बन माइनिंग और रीसाइक्लिंग क्षमताएँ बनाना
- स्किल्स डेवलपमेंट: रेयर अर्थ टेक्नोलॉजीज़ के लिए स्पेशलाइज्ड ट्रेनिंग सेंटर्स बनाना
लॉन्ग-टर्म विज़न (2030 के बाद)
- टेक्नोलॉजी लीडरशिप: नेक्स्ट-जनरेशन प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजीज़ और अल्टरनेटिव मटेरियल्स विकसित करना
- एक्सपोर्ट पोटेंशियल: ग्लोबल मार्केट्स के लिए अल्टरनेटिव सप्लायर के रूप में उभरना
- रीजनल हब: साउथ एशिया के लिए रेयर अर्थ प्रोसेसिंग सेंटर के रूप में काम करना
- पूर्ण आत्मनिर्भरता: बाहरी सप्लाई डिपेंडेंसी से पूर्ण स्वतंत्रता पाना
चुनौतियाँ और रिस्क मिटिगेशन
टेक्निकल चुनौतियाँ
- प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी गैप्स: ऑक्साइड्स को हाई-वैल्यू मैग्नेट्स में बदलने की सीमित क्षमताएँ
- कैपिटल इंटेंसिटी: प्रोसेसिंग फैसिलिटीज़ के लिए उच्च प्रारंभिक निवेश
- स्किल्ड वर्कफोर्स: रेयर अर्थ प्रोसेसिंग में टेक्निकल एक्सपर्टीज़ की कमी
एनवायरनमेंटल कंसिडरेशंस
- रेडियोएक्टिव बाय-प्रोडक्ट्स: थोरियम-युक्त मटेरियल्स का सुरक्षित हैंडलिंग और डिस्पोज़ल
- वॉटर और एनर्जी इंटेंसिटी: सस्टेनेबल प्रोसेसिंग मेथड्स और रिसोर्स मैनेजमेंट
- कोस्टल सेंसिटिविटी: माइनिंग गतिविधियों और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन
मार्केट डायनेमिक्स
- ग्लोबल कॉम्पटीशन: चाइना के अल्टरनेटिव खोज रहे अन्य देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा
- प्राइस वॉलेटिलिटी: ग्लोबल रेयर अर्थ मार्केट्स में कॉस्ट फ्लक्चुएशंस का प्रबंधन
- टेक्नोलॉजी एक्सेस: क्रिटिकल प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजीज़ के लिए अनुकूल शर्तें सुनिश्चित करना
निष्कर्ष:
रेयर अर्थ एलिमेंट्स आधुनिक तकनीकों की रीढ़ हैं, जो क्लीन एनर्जी, डिफेंस सिस्टम और कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स को ताकद देती हैं। भारत के विशाल REE रिज़र्व उसे एक अनोखा अवसर देते हैं कि वह एक रेज़िलिएंट, घरेलू सप्लाई चेन बनाकर ग्लोबल टेक्नोलॉजी का पावरहाउस बन सके।
लेकिन इस क्षमता को वास्तविकता में बदलने के लिए लॉन्ग-टर्म कमिटमेंट की ज़रूरत है: रिसोर्स बेस को अनलॉक करना, प्रोसेसिंग और मैग्नेट मैन्युफैक्चरिंग में निवेश करना, विदेशी पार्टनरशिप्स को विकसित करना, रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देना और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना। नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (NCMM), एक्सपोर्ट कर्ब्स, प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव्स और विशाखापट्टनम आरईपीएम (REPM) प्लांट जैसी घोषणाएँ उत्साहजनक कदम हैं।
चाइना के एक्सपोर्ट रिस्ट्रिक्शंस के कारण, मार्केट में भारत को एक रिलायबल अल्टरनेटिव सप्लायर के रूप में उभरने का सही अवसर है। रेयर अर्थ इंडिपेंडेंस पाने से, न केवल भारत के टेक्नोलॉजिकल फ्यूचर को सुरक्षा मिलेगी, बल्कि देश को ग्लोबल क्लीन एनर्जी ट्रांज़िशन और एडवांस्ड टेक्नोलॉजी ईकोसिस्टम्स, में एक भारी प्लेयर के रूप में पोज़िशन भी करेगी।
अगले पाँच साल तय करेंगे कि क्या भारत रेयर अर्थ इम्पोर्ट-डिपेंडेंट नेशन से एक सेल्फ-रिलायंट टेक्नोलॉजिकल पावरहाउस में बदल सकता है या नहीं।
