मेक इन इंडिया - PM Modi की स्वदेशी मुहिम और भारत में अमेरिकी टैरिफ का असर

Hitesh Mahajan
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डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी हाथ मिलाते हुए, 25% टैरिफ और मेक इन इंडिया संदेश के साथ

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परिचय

2014 में शुरू हुई Make in India मुहिम का मकसद था भारत को एक मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना और विदेशी निवेश  खीचना। 2025 में इस पहल ने जबरदस्त-growth दर्ज की है, लेकिन हाल ही में अमेरिका ने नए टैरिफ लागू करके भारतीय एक्सपोर्टर्स को चुनौती दी है। इस आर्टिकल में जानेंगे कि ये अमेरिकी टैरिफ क्यों लगाए गए, इनका भारत की स्वदेशी इंडस्ट्री  पर क्या असर हुआ, और कंपनियाँ कैसे अपनी strategies बदल रही हैं।

अमेरिकी टैरिफ का निशाना और वजहें

भारत से अमेरिका को प्रमुख निर्यात 2023 का चार्ट, कीमती पत्थर, इलेक्ट्रॉनिक्स, दवाएं और मशीनरी


2025 में अमेरिकी प्रशासन ने उन प्रोडक्ट्स पर टैरिफ बढ़ाए हैं जिनमें भारत की एक्सपोर्ट क्षमता तेज़ी से बढ़ी है। मुख्य रूप से ये सेक्टर्स शामिल हैं:

  1. स्टील और एल्युमिनियम : अमेरिका ने सुरक्षा का हवाला देते हुए इनके इम्पोर्ट पर 25% टैरिफ लगाया।
  2. टेक्सटाइल्स और गारमेंट्स : मोदी सरकार की पॉलिसी से यह इंडस्ट्री तेजी से बढ़ रही है, इसलिए सालाना 15–20% टैरिफ बढ़ा दिया गया।

ये टैरिफ इम्पोर्ट-डिफिसिट को कम करने और घरेलू यूनिट्स को प्रोटेक्ट करने की अमेरिकी कोशिशों का हिस्सा हैं।

Make in India की तैयारियाँ और चुनौतियाँ

उत्पादन क्षमता बढ़ाना

मोदी सरकार ने पिछले एक दशक में कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स शुरू किए:

  • Industrial corridors और special economic zones का विस्तार
  • मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर्स में टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन

इनसे उत्पादन लागत कम हुई और क्वालिटी बेहतर हुई। लेकिन अमेरिकी टैरिफ बढ़ने से लागत में 5–10% का इजाफा हुआ है।

सप्लाई चेन डायवर्सिफिकेशन

भारत की कंपनियाँ अब चीन और दक्षिण पूर्व एशिया (Southeast Asia) की जगह भी सप्लाई चेन डायवर्सिफाई कर रही हैं। 

उदाहरण:

  • नेक्स्ट-जनरेशन इलेक्ट्रॉनिक्स मॉड्यूल्स का प्रोडक्शन अब बंगलुरु, हैदराबाद और पुणे में शिफ्ट
  • ऑटो पार्ट्स मैन्युफैक्चरिंग के लिए चेन्नई-बेंगलुरु कॉरिडोर में निवेश

साथ ही, MSMEs (Micro, Small & Medium Enterprises) को सपोर्ट करने के लिए Credit Guarantee Fund Trust for Micro and Small Enterprises का क्रेडिट लिमिट बढ़ाया गया है।

विदेशों में नई संभावनाएँ

यूरोपीय यूनियन और दक्षिण अमेरिका

अमेरिका के टैरिफ से बचने के लिए भारतीय एक्सपोर्टर्स अब EU, UK, और Latin America मार्केट पर फोकस बढ़ा रहे हैं। इनके लिए:

  • Free Trade Agreements (FTAs): भारत-EU FTA और भारत-UK CEPA पर तेजी से काम
  • Trade delegations: बिज़नेस डेलीगेशन्स और B2B मीटिंग्स

अफ्रीका और मध्य पूर्व

इमोर्ट-एसेसमेंट में लचीलेपन के कारण अफ्रीकी देशों और Gulf Cooperation Council (GCC) देशों में भी अवसर दिख रहे हैं। यहां के बाजारों में टेक्सटाइल्स, फार्मास्यूटिकल्स, और रिन्यूएबल एनर्जी इक्विपमेंट्स की डिमांड बढ़ी है।

Make in India को आगे बढ़ाने के लिए सुझाव

  • टेक्नोलॉजी इंपोर्ट पर कम निर्भरता: R&D (research & development) पर इन्वेस्टमेंट बढ़ाकर इनोवेशन को बढ़ावा देना।
  • कस्टम-क्लीयरेंस प्रोसेसिंग सुधारना: Ease of Doing Business बढ़ाने के लिए डॉक्यूमेंटेशन डिजिटल करना।
  • लोकल-टू-लोकल वैल्यू चेन: कच्चे माल (raw materials) भारत में सोर्सिंग बढ़ाकर एक्सपोर्ट-कॉस्ट कम करना।
  • ब्रांड बिल्डिंग और मार्केटिंग: “Made in India” ब्रांड वैल्यू को इंटरनेशनल मार्केट में पोजिशन करना।

निष्कर्ष

अमेरिकी टैरिफ चुनौतियाँ बढ़ा रहे हैं, लेकिन Make in India की मजबूत नींव और सरकार के रिफॉर्म्स से कंपनियाँ नए मार्केट्स में सफलतापूर्वक एंटर कर सकती हैं। आप बताइए, इनमें से कौन सी स्ट्रेटेजी आपकी कंपनी पर सबसे ज़्यादा असर दिखायगी और इस विषय पर आपके क्या विचार हैं? नीचे कमेंट्स में हमें बताएं!


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